Mandsaur Festival: क्यों रावण को दामाद मानकर दिन में पूजा और रात में किया जाता है वध?

Mandsaur Festival: क्यों रावण को दामाद मानकर दिन में पूजा और रात में किया जाता है वध?

10/2/2025, 9:55:20 AM

Mandsaur Ravan tradition: मध्यप्रदेश के मंदसौर में दशहरे की परंपरा अलग है-रावण को दामाद मानकर महिलाएं सुबह घूंघट में पूजा करती हैं और रात को उसका वध। आखिर क्यों निभाई जाती है यह 210 साल पुरानी रहस्यमयी परंपरा? Mandsaur Dussehra Celebration: दशहरे का नाम आते ही दिमाग में सबसे पहला चित्र आता है -- रावण दहन का। पूरे देश में अधर्म पर धर्म की जीत के प्रतीक के रूप में रावण का पुतला जलाया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले में एक ऐसी अनोखी परंपरा है जहां दिन में रावण की पूजा की जाती है और शाम को उसका वध? यह परंपरा पिछले 210 सालों से भी अधिक समय से निभाई जा रही है। क्यों माना जाता है रावण को मंदसौर का दामाद? कहानी जुड़ी है रावण की पत्नी मंदोदरी से। माना जाता है कि मंदोदरी का मायका मंदसौर (जिसका पुराना नाम दशपुर था) है। इसलिए यहां के लोग रावण को अपना दामाद मानते हैं। मंदसौर का नामदेव छिपा समाज रावण को सम्मान की दृष्टि से देखता है। महिलाएं उसे दामाद का दर्जा देकर पूजा करती हैं और उसकी प्रतिमा के सामने घूंघट में जाती हैं। महिलाएं घूंघट में रावण की पूजा क्यों करती हैं? यहां दशहरे की सुबह महिलाएं घूंघट डालकर रावण की प्रतिमा के सामने जाती हैं। वे उसके चरणों में लच्छा बांधती हैं और स्वास्थ्य व मनोकामना की प्रार्थना करती हैं। माना जाता है कि ऐसा करने से रोगों से मुक्ति मिलती है और परिवार सुखी रहता है। लेकिन यह सम्मान केवल दिन तक ही रहता है, क्योंकि शाम को उसका वध किया जाता है। पूजा के बाद शाम को क्यों किया जाता है वध? मंदसौर में दिन में रावण की अच्छाइयों-उसकी विद्वता और शिवभक्ति -- को याद कर उसकी पूजा की जाती है। लेकिन शाम होते ही उसके अहंकार और सीता हरण जैसे अधर्म को याद कर उसका सांकेतिक वध किया जाता है। फर्क इतना है कि यहां रावण का पुतला नहीं जलाया जाता। इस परंपरा के पीछे संदेश है -- "अच्छाई चाहे कितनी भी बड़ी हो, बुराई का अंत जरूर होता है।" क्या है मंदसौर की रावण प्रतिमा की खासियत? मंदसौर में रावण की एक विशालकाय प्रतिमा भी है, जिसकी पूरे साल पूजा होती है। कहा जाता है कि इस प्रतिमा में खास बात यह है कि यहां रावण के 10 सिरों की जगह 9 सिर बनाए गए हैं और ऊपर गधे का सिर लगाया गया है। यह प्रतीक है बुद्धि के भ्रष्ट होने और अहंकार से पतन का। क्यों आज भी रहस्यमयी बनी हुई है यह परंपरा? पूरे देश में जहां दशहरे पर रावण दहन होता है, वहीं मंदसौर की परंपरा आज भी लोगों को रहस्यमयी लगती है। सवाल यही उठता है-क्या किसी बुराई के साथ अच्छाई भी छिपी होती है? शायद इसी वजह से यहां के लोग रावण की पूजा भी करते हैं और वध भी, ताकि अच्छाई और बुराई के बीच संतुलन का संदेश मिलता रहे। Read Full Article